सोमवार, 15 अगस्त 2011

आज़ादी की 65 वीं वर्षगांठ

     मैं अपने और अपने सहयोगियों की ओर से सम्पूर्ण भारतवासियों और विदेशो में बसे भारतीय मूल के निवासियों के साथ-साथ सैकड़ो वर्षो से बिछड़ चूके भारतवंशियों को भारत की आज़ादी के 65 वें वर्षगांठ पर बहुत-बहुत बधाइयाँ देता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि यह आजादी हमेशा बनी रहे और भारतवासी विश्व  के कोई भी कोने में हो ईश्वर उन्हें सुख, शांति, समृद्धि और राष्ट्र-प्रेम की भावना जागृत करें.
                                                                    आज मुझे अत्यंत खुशी है और गर्व का अनुभव हो रहा है कि जिस आज़ादी रुपी दुल्हनियाँ का आगमन 15 अगस्त 1947 को हुआ था, वह आज धन-धान्य, सुख-शान्ति, समृद्धि और सौभाग्य से युक्त होकर अपनी उम्र के 65वें वसन्त तक पहुँच चूकी हैं। इन 65 वर्षों में कई बार इसकी स्मिता और आबरु पर कभी घर के हीं लोगों ने डाका डाला तो कभी विदेशी शक्तियों और पड़ोंसियों ने अपने नापाक इरादे से आक्रमण किया। फिर भी गाँधी के त्यागों और अनगिनत शहिदों के रक्त से सिंचित हमारी मातृभूमि अपनी अखण्डता और अक्षुण्ता को बनाए रखी है।
                                                                    अत: हमारा सविनय आग्रह उन सभी भाई-बहनों से जिन्होंने कुछ सैद्धांतिक और आपसी मतभेदों के कारण हमारे समाज के मुख्य धारा से अलग हो गये हैं, उन्हें मैं पुनः मुख्य धारा में शामिल होकर इस मातृभूमि की आज़ादी और शहिदों के बलिदानों की लाज बचाने केलिए आमंत्रित करता हूँ, क्योंकि मुझे ऐसा लग रहा है कि कुछ स्वार्थी तत्व भारत के लोकतांत्रिक और संसदीय व्यवस्था को हानि पहुँचा सकते हैं। अतः आज के इन विषम परिस्थितियों में सभी मातृभूमि के संतानों का एकजूट होकर विश्व की सबसे बड़ी प्रजातंत्र की रक्षा करने की आवश्यकता है। भारत का संविधान विश्व का एक आदर्श संविधान है, इसलिए हमें संसदीय प्रणाली आम चूनाव और आम सहमति से भ्रष्टाचार से लेकर लोकपाल विधेयक जैसे समस्त मुद्दों का हल निकालना चाहिए। हमें जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों, विद्वानों, विश्लेषकों तथा स्वविवेक और धैर्य से काम लेना चाहिए, क्योंकि जल्दबाज़ी में उठाये गये कदम किसी भी दॄष्टी से उचित एवं न्याय-संगत नहीं माना जा सकता। जैसा कि रामायण में [भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण को] लक्ष्मण भरत और उनके साथ आ रही सेना को देखकर यह अनुमान लगा लिया कि भरत हमारे  [राम,लक्ष्मण और सीता के] ऊपर आक्रमण करने आ रहें हैं। ऐसे में लक्ष्मण ने अपने प्रभु श्रीराम की जान की सुरक्षा केलिए चिंतित होकर भरत को हीं मारने केलिए धनुष तान दी और श्रीराम की एक भी बात सूनने को तैयार नहीं हुए तो श्रीराम ने कहा_
                     "लक्ष्मण! कभी-कभी आँख से देखा और कान से सूना भी गलत होत है।" और आख़िर हुआ भी यही कि भरत राम को वापस अयोध्या वापस ले जाना चाहते थें।
                                                                   शायद कहीं यही हाल हमारे साथ न हो जाए, कि जिसे हम अपना दूसरा गाँधी शिवाजी और भगत सिंह मान रहें हैं, वह कुछ और न निकल जाएं। इसलिए हमें सोच-समझ्कर केवल संवैधानिक और प्रजातांत्रिक तरिकों से हीं सरकार को भ्रष्टाचार और लोकपाल केलिए मज़बूर करनी चाहिए। मेरा निज़ी विचार है कि सरकार को अपने प्रस्ताव के साथ सिविल सोसायटी, विपक्ष, पत्रकारों, विद्वानों और विश्लेषकों के प्रस्ताव को एकसाथ विभिन्न बिन्दुओं में छ्पवाकर उसपर आम मतदान कराये जाएं और फिर संसद पर रखकर उसके मुख्य बिन्दुओं पर चर्चा करवाकर एक सर्वमान्य कानून का रुप दिया जाना चाहिए। मेरा मानना है कि कोई भी कानून संसद के अन्दर हीं बनना चाहिए तभी लोकतांत्रिक व्यवस्था बनी रहेगी अन्यथा हम अपने समृद्ध लोकतंत्र को खो सकते हैं।
जय हिंद! 
                                                                       

                                                                                                                                     [तस्वीरें,- गूगल के साभार]