गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

झारखण्ड ख़ूनी क्रांति की ओर!

   सेवा में,                                                                          दिनांक - 21अप्रैल 2011    
                
                  समाजसेवी, बुद्धिजीवी एवं नेतागण                         
      
     विषय: अतिक्रमण पर फैसला और झारखण्ड के लोगों को तबाही से बचाने की अपील.                   
                                  
                                       मैं झारखण्ड सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त NGO (अलख-कामेश्वर मेमोरिअल संस्थान, Reg.No . 489) का सचिव हूँ .मेरा ई-मेल भेजने का मुख्य उद्देश्य आपके ध्यान को झारखण्ड राज्य के सर्वाधिक उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में से एक बेरमो प्रखंड (जिला बोकारो) समेत पुरे कोयलांचल  की ओर आकृष्ट करना है. यहाँ के लगभग 60 -70 % लोग विशेष कर गरीब तथा पिछड़े वर्ग के हैं जो उग्रवादी बनने के लिए तैयार हो रहें हैं. इसका मुख्य कारन  झारखण्ड  उच्च न्यायलय (रांची) का वह आदेश है जिसके तहत C.C.L., B .C .C .L . तथा S.A.I.L. अपनी जमीन पर से उनलोगों को जबरन हटा रही है जो आजादी के पहले से बसे हैं. यहाँ के अधिकांश लोग- ठीका मजदूर, ट्रक, ऑटो चालक, खटाल चलाने वाले, खुदरा व्यापारी, मिस्त्री (machanic) तथा रिटायर हो चुके कर्मचारी या उनके परिवार के लोग रहते है. वे अपने द्वारा  निर्मित छोटे-छोटे झोपड़ीनुमा घरों या C.C.L या B .C .C .L  के रिजेक्ट क्वार्टर में मरम्मत करा कर किसी तरह गुजारा कर रहें हैं. यहाँ के निवासियों को C.C.L. प्रबंधक तथा नेताओं द्वारा शुरू से हीं  आश्वासन दिया जाता रहा हैं  कि आवश्यकता पड़ने पर  ये  कम्पनियाँ   उनका पुनर्वास कराएगी. लोग इस आश्वासन पर विश्वाश कर जीवन भर की कमाई इन घरों और अपने व्यापार में लगा चूकें हैं. वे अपने छोटे आमदनी से बच्चों को महंगाई के इस दौर में किसी तरह पढ़ा रहें हैं. उनका एक हीं उम्मीद है कि बच्चें इस कोल फील्ड में अच्छे शैक्षणिक एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर अपना और अपने परिवार का भविष्य उज्जवल करेंगे परन्तु जैसे हीं उनके हाथों में यह नोटिस आया कि 48 से 72 घंटों के भीतर ज़मीन तथा घर ख़ाली कर दें अन्यथा प्रशासन कि मदद से बल-पूर्वक उन्हें और उनके सामान को फ़ेंक दिया जायेगा अन्यथा सामान सहित तोड़ दिया जायेगा. इस नोटिस के बाद चारों और सन्नाटा और मातम फैल चूका है. कुछ  घरों में चूल्हे भी नहीं जल रहें हैं. लोग व्याकुल होकर इधर-उधर स्थानीय नेताओं से मिल रहें हैं और एक-एक कि.मी. कि दुरी पर मीटिंग कर रहें हैं. उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा कि वें क्या करें? स्थानीय नेताओं से उदासीन और मायूस होकर स्वयं अगला कदम बढ़ाने के लिए तैयार हो रहें हैं. उन्हें चिंता है कि इतने कम समय में जीवन-भर की कमाई से अर्जित जरुरत कि चीजों जैसे,- टी.वी., फर्नीचर या अन्य छोटे-मोटे उपभोक्ता वस्तुओं को कैसे बचाएं? उनके पास किराये पर जाने तक कि हैसियत नहीं हैं. वे मायूस होकर रोने लगते हैं. कुछ लोगों कि तबियत भी ख़राब हो चुकी हैं. इलाज के दौरान भी वे अपने भविष्य को देखकर और अधिक बीमार होते जा रहें हैं.  16 /4 / 20011 को B .C.C.L. के मकान में रहने वाला एक व्यक्ति अपने घर को टूटते देख सद्दमें  से मर चूका .
                                                       
                                       10वीं  और 12वीं कि परीक्षा झारखण्ड में चल रही हैं परन्तु इस स्थिति में बच्चें भी पढ़ने में असमर्थ हैं. बेरमो और पुरे कोयलांचल में ऐसा कोई भी भूमि नहीं है, जहाँ लोग कुछ समय के लिए रह सकें. क्योंकि इस क्षेत्र में लगभग सभी भूमि रेलवे , B.C.C.L.,  D .V .C , फोरेस्ट,या रैयतों  द्वारा अधिकृत है  अतः  ये संस्थाएं  किसी भी स्थिति में अपनी भूमि पर किसी को अस्थायी रूप से भी रहने देने की इजाजत नहीं दे रही है. जबकि कुछ लोग C.C.L., B.C.C.L., S.A.I.L.( बोकारो इस्पात)  के विस्थापित हैं जिन्हें उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद भी न तो नौकरी प्राप्त हुआ है और न हीं ज़मीन या पुनर्वास की गयी है.ऐसे में उन्हें उग्रवादी बनने  या आत्म हत्या करने  के सिवाए कोई रास्ता नहीं  दिख रहा  हैं . ऐसे में वे हथियार उठा लेते हैं तो इसका जिम्मेवार कोन होगा कोर्ट या झारखण्ड सरकार ? जब की अतिक्रमण के नाम पर पुरे झारखण्ड में लोगो को सताया जा रहा हैं. अतः यंहां के लोग आप और न्याय के मंदिर से पूछना चाहते हैं:-                           

(1)       यदि कोई नागरिक किसी सरकारी भूमि पर रहता है तो उसे अवैध कब्ज़ा कह कर हटा दिया जाता है .चाहे वह 10 वर्षों से रह रहा हो या 60 वर्षों से .जबकि कोई आम आदमी के ज़मीन पर कोई व्यक्ति 12 वर्षों या इससे अधिक समय तक रह जाता है तो उस मकान या भूमि का मालिकाना हक़ हस्तांतरित होकर रहने वाले के नाम पर हो जाता है. अतः ऐसे में कंपनी/सरकार और नागरिकों में यह कैसा भेद है ?                               

(2)       यदि सरकारी भूमि को 48 से 72 घंटों के अन्दर ख़ाली करने का उच्च या उच्चतम न्यायालय आदेश जारी कर देती है और प्रशासन की मदद से ख़ाली भी करा दिया जाता है. तो एक विश्थापित के पक्ष  में  अदालत ऐसा फरमान जारी  क्यों नहीं कराती  ?                                                                                                          

(3)   विस्थापित को  पुनर्वास तथा  नौकरी शीघ्र-अति-शीघ्र अर्थात 48 से 72 घंटे के अन्दर क्यों नहीं दिलवाती?   क्या अदालत गरीब और असहाय जनता को अपना रुतबा और पावर दिखलाना चाहती है और अमीरों तथा सरकारी या गैर- सरकारी .कंपनियों का हितैषी बनाना?                                                            

(4 )    क्या अदालत का आदेश मानव-कल्याण, जनता के सुख - शांति और नैतिकता से ऊपर है?                                              
                                      आप सभी राष्ट्र-भक्तों से अपील हैं  की आप झारखण्ड को बचा लें. क्योंकि न्यूजपेपर से पता चला हैं की  लगभग 1 ,49 ,००० लोग प्रभावित  हैं और उनके समर्थन में M .C .C, 23 अप्रैल को झारखण्ड बंद का ऐलान  कर चुके हैं . अगर इतने लोग M .C .C के साथ हो गए या उन्हें चंदा देने लगे तो झारखण्ड का क्या  होगा ? यह सोच कर डर लगता हैं! अतः मैं बार-बार सभी समाजसुधारको और राष्ट्र-भक्तों से गुज़ारिश कर रहा हूँ कि आप झारखण्ड  को उजड़ने से बचा लें.
                                                                     
                                                                             जय हिंद !