रविवार, 19 दिसंबर 2010

कंप्यूटर ज़हानाबदी और.....

                 लगभग सभी शब्दों का अनुवाद हम हिंदी में कर सकतें हैं परन्तु कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिन्हें उसके मूलरूप में हीं रखा जाये तो ज्यादा उचित होता है. हमारे शहर के जाने-माने कंप्यूटर शिक्षक श्री बनारसी ज़हानाबादी अपनी भाषा और हिंदी अनुवाद  केलिए जाने जाते हैं. उनके बोलने का अंदाज़ भी अनोखा है. वे पहले खैनी या पान-मसाला खा लेते हैं और कुछ इसप्रकार हिंदी में कंप्यूटरटूल्स की जानकारी देते हैं. जिसे यदि कोई बाहर से सुने तो वो उन्हें बहुत बुरा समझ सकता हैं, विशेषकर लड़की का भाई या पिता. एकबार मैं बाहर से उन्हें सुन रहा था. और अन्दर-हीं-अन्दर गुस्से से उबल रहा था, क्योंकि मैंने दो लड़कियों को क्लासरूम में घुसते देखा और अन्दर से मास्टर साहब की आवाज़ कुछ इसप्रकार से बाहर आ रही थी :- 

शिक्षक:-       बैठो! अब शुरू करूँ !

छात्राएँ:-          Yes Sir
                   ( इसके बाद कंप्यूटर खुलने कि आवाज़ आती है.)                      

शिक्षक  :-       रुको ! पहले तरोताज़ा करे!
             इसके लिए पहले चूहे को दायाँ और फिर बायाँ दबाओ! उसके बाद दोनों अपना-अपना
               पैंट (Paint) खोलना. मैं औज़ार दिखाता हूँ. ध्यान से देखो यह कितना अच्छा है. 
       
छात्राएँ  :-       Yah! Amazing! हमलोगों को यह पता भी नहीं था कि यह इतना अच्छा होता है.

शिक्षक :-        तुम्हें पता कैसे होगा. कभी देखी होगी तब !  मैं औज़ार को कभी नहीं छुपाता.  
 
छात्राएँ  :-       जी! अब शुरू करें! 

शिक्षक :-        हाँ क्यों नहीं पर पहले अभ्यास तो कर लो. 

छात्राएँ:-         OK Sir.


                                     इसके बाद एकदम कमरे में शांति हो गई. मेरा श़क अब यकिन मैं बदलने लगा. इसबीच गाने की आवाज़  आती है "कैसे न आये मुझे लाज़ ज़ना छुने दो अंग मोहे आज ज़ना...."   मैं पूरे गुस्से और ताव के साथ अंदर गया और सोचा,कि आज मैं पर्दा उठा कर रहूँगा. पर जैसे हीं मैं अन्दर गया. वहां की स्थिति देख चकित हो गया. मैंने क्या सोचा था और अंदर का माहौल बिलकुल  भिन्न था. मैं पूरी तरह शर्मिंदा हो गया क्योंकि शिक्षक काफी बुजुर्ग  थें. तभी शिक्षक ने मुझे अंदर आने को कहा. मैं अंदर गया और अपनी सारी ग़लतफ़हमी उन्हें बताया तो वे जोर-जोर से हंसने लगे और बोले- इसमें  भला आपकी क्या गलती है ? ग़लती तो मेरी हैं जो हिंदी मैं कंप्यूटर सीखाने का प्रयास कर रहा था. मैंने सोचा, कि मोहल्ले कि अल्पशिक्षित लड़कियाँ  हैं. इन्हें मैं हिंदी मैं कंप्यूटर सिखलाउंगा.
                             मुझे आज भी इस बात को कहते और सुनते हुए शर्म आती हैं कि मेरे शांत और निश्छल मन में ऐसी गन्दी विचार आई कैसे. आखिर शिक्षक और स्टुडेंट्स का रिश्ता तो बाप-बेटी या बाप-बेटे का होता हैं. हमारे शास्त्रों में तो गुरु को सबसे विश्वासी माना जाता है. जब  गुरु वाल्मीकि की कुटिया में माता सीता अपना पूरा जीवन बिता सकती हैं तो आज कुछ पल में हमारे मन में श़क क्यों उत्पन्न होने  लगता है? क्या अब गुरु और शिष्य अपने धर्म भूल चुके हैं? भारत कि संस्कृति और परंपरा अपनी पवित्रता खोने लगी है? अब भारत में पश्चिमी संस्कृति छा चुकी है? क्या अब भारतीय संस्कृति को हम अपने विचारधारा से मूलरूप में लौटा नहीं सकतें ?
                                          
                            आज भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा की रक्षा करना एक बड़ी चुनौती बन गई हैं. आयें इसे बचाने के संकल्प लें और मैं आप सब से अनुरोध करता हूँ, कि आप कभी गुरु-शिष्या  की पवित्रता पर मेरी तरह सवाल न उठाए. यह सबसे पाक रिश्ता हैं इसे हम बदनाम नहीं कर सकतें क्योंकि यह माँ सरस्वती  की पूजा है.
                                                                              
                                                                                       ....Shatrughan Pandey

 

                                                       इति
शुभम!