शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

एक परिचय: भारतीय देवी-देवताओं की


यूँ तो विश्व में अनेक सभ्यता एवं संस्कृतियों ने जन्म लिया परन्तु समय के साथ लगभग सभी सभ्यताएँ अपनी विशेषताएँ एवं पहचान खोती चली गयी परन्तु यदि कहीं वह संस्कृति एवं सभ्यता जीवित है तो वह भारत एवं चीन में है, क्योंकि यहाँ की सभ्यता में वह अद्भुत क्षमता है जो वक्त के साथ बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ढलती जाती है और विश्व-बंधुत्व की नीति का अनुशरण करते हुए अपने में सभी को समाहित करती जाती है आज के २१ वीं सदी के भारत में भी हम सिन्धु-घाटी सभ्यता को यहाँ के धर्म, रीति-रिवाज, जीवन-शैली तथा परिधानों में देख सकतें हैं
जैसा की हम सभी जानतें हैं की सिन्धु-घाटी सभ्यता विश्व की सबसे पूरानी सभ्यता है जो अपने उत्कर्ष-काल में काफी समृद्ध एवं उन्नत थी यह सभ्यता अपने वाणिज्य,कृषि एवं व्यवस्थित नगर-निर्माण, भवन-निर्माण के साथ-साथ श्रेष्ठ शिल्पकला, चित्रकला, मूर्तिकला तथा अपनी विश्व-प्रसिद्द संस्कृति एवं सबसे लचीला और उदारवादी धर्म के लिए प्रसिद्द थी आज भी भारत की सभ्यता में यह गुण पाया जाता है यहाँ के धर्म में देवी-देवताओं की मूर्ति-पूजा,पीपल,तुलसी आदि वनस्पतियों की पूजा इत्यादि सिन्धुकालीन सभ्यता की अनमोल देन है, क्योंकि पुरातत्व-विभाग ने खुदाई में जो मूर्तियाँ एवं अन्य वस्तुएं प्राप्त की हैं, वह हिन्दू-धर्म से शत-प्रतिशत मेल खातीं हैं
अतः मैं आज से महान भारतीय संस्कृति और सभ्यता में पूज्यनीय देवी-देवताओं का एक-एक कर परिचय देती रहूंगी और वर्तमान भारत में सम्बंधित देवी-देवताओं का मंदिर किस राज्य में और कहाँ विद्यमान हैं, उसकी भी जानकारी दूंगी आज मैं से अपने गृह-राज्य झारखंड की प्रसिद्द छिन्नमस्तिका मंदिर, रजरप्पा से ये श्रृंखला आरम्भ कर रही हूँ:-

आज की देवी: -
.माँ छिन्नमस्तिका
एक बार भगवती भवानी अपनी सहचरियों- जया और विजया के साथ मन्दाकिनी में स्नान करने के लिए गयीं वहां स्नान करने पर क्षुधाग्नि से पीड़ित होकर वें कृष्ण-वर्ण की हो गयीं। उस समय उनकी सहचरियों ने उनसे कुछ भोजन करने के लिए माँगा। देवी ने उनसे कुछ क्षण प्रतीक्षा करने को कहा। कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् पुनः याचना करने पर देवी ने पुनः प्रतीक्षा करने के लिए कहा। बाद में उन देवियों ने विनम्र स्वर में कहा कि 'माँ तो शिशुओं को भूख लगने पर तुरंत भोजन प्रदान करती है।' इसप्रकार उनके मधुर वचन सुनकर कृपामयी माँ ने तत्क्षण अपने कराग्र (तलवार) से अपना सिर काट लिया। कटा हुआ सिर देवी के बाएं हाथ में आ गिरा और कबंध से तीन धाराएँ निकलीं। वे दो धाराओं को अपनी दोनों सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं, जिसे पीतीं हुई वे दोनों बहुत प्रसन्न होने लगीं और तीसरी धारा जो ऊपर की ओर थी, उसे वें स्वयं पान करने लगीं। तभी से यें छिन्नमस्तिका कही जाने लगीं।











माँ छिन्नमस्तिका का मंदिर भारत के झारखंड राज्य के गोला क्षेत्र के पास रजरप्पा-धाम में स्थित है। कहा जाता है कि माँ छिन्नमस्तिका कि मूर्ति हजारों साल पुरानी है। यहाँ जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह अवश्य हीं पूरी होती है। इसलिए यहाँ दूर-दूर से लोग माँ का दर्शन करने आते हैं। यहाँ माँ की पूजा-अर्चना की जाती है तथा मन्नत मांगे जाते है। सभी की मनोकामनाएँ माँ पूरी करती हैं। अतः यहाँ सालों भर भीड़ लगी रहती है।










इस स्थान का धार्मिक महत्व तो हैं हीं, साथ-हीं यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य भी मनमोहक है। जहाँ भैरवी नदी दामोदर नदी में समाहित होती है, वहां का दृश्य देखतें-हीं बनता है। दूर-दूर से लोग इसकी सुन्दरता को देखने आते हैं। जो भी यहाँ आता है, यहीं का हो जाता है।











संक्षेप में, हम यह कह सकतें हैं की रजरप्पा-धाम का वातावरण धार्मिक और प्राकृतिक दोनों हीं दृष्टि से महत्त्व रखता है।