सोमवार, 11 अप्रैल 2011

एक परिचय: भारतीय देवी-देवताओं की

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आज की देवी :
 
२.माँ नवदुर्गा
वासंतीए दुर्गापूजा के उपलक्ष्य में मैं सभी भाई-बहनों को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूँ और आज की देवी शीर्षक के अंतर्गत नवदुर्गा के प्रत्येक देवी का एक-एक करके परिचय और उनकी महिमा का गुण-गान करती रहूंगी. तो शुरू करें-
प्रथमं शैलपुत्रीति :
                        माँ शैलपुत्री पहली दुर्गा हैं. ये पर्वतों के राजा हिमालय की पुत्री एवं भगवन शिव की पत्नी हैं. ये पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं. जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया तो उस यज्ञ में उनहोंने भगवन शिव को नहीं बुलाया. माँ सती अत्याग्रहपूर्वक जब वहां पहुंची तो दक्ष ने भगवन शिव का अपमान  भी किया. माँ सती अपने पति का यह अपमान सहन न कर सकी और माता एवं पिता की उपेक्षा कर योगाग्नी द्वारा अपने शरीर को जलाकर भस्म कर दिया. फिर अगले जन्म में पर्वता-धि-राज हिमालय की पुत्री पार्वती (जिन्हें हैमवती देवी भी कहा जाता है) बनकर भगवान शिव की अर्धांगिनी बनी. 
                           उपनिषद के अनुसार, जब इन्हीं भगवती हैमदेवी ने इन्द्र आदि देवताओं का वृत्रवधजन्य अभिमान खंडित कर दिया तब वे लज्जित हो गएँ. उन्होंने हाथ जोड़कर उनकी स्तुति की और स्पष्टतः कहा की  'वास्तव में आप हीं शक्ति हैं, आपसे हीं शक्ति प्राप्त कर हमसब- ब्रम्हा, विष्णु एवं शिव भी शक्तिशाली है. आपकी जय हो,जय हो!' 
द्वितीयं ब्रम्हचारिणी  :
                                माँ दुर्गा का दूसरा रूप माँ ब्रम्हचारिणी है. ब्रम्ह अर्थात तप का आचरण करने वाली. ये देवी ज्योतिर्मयी भव्यमूर्ति हैं. इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल है तथा ये आनंद से परिपूर्ण हैं. इनके सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है-ये पूर्वजन्म में हिमालय की पुत्री पार्वती हैमवती थी. एक बार अपनी सखियों के साथ क्रीडा में व्यस्त थीं. उस समय देवर्षि नारद इधर-उधर भ्रमण करते हुयें वहां पहुंचे औरमाता की हस्तरेखाओं को देखते हुए बोलें कि 'तुम्हारा विवाह तो पूर्वजन्म में हीं भगवान भोलेनाथ से हुआ था और इस जन्म में भी तुम्हारा विवाह उन्हीं से होगा परन्तु इसके लिए तुम्हें कठोर तपस्या करनी होगी.' नारद जी के चले जानें के बाद पारवती ने अपनी माता मैना से कहा कि 'बारों शम्भू न त रहूँ कुँआरी. अर्थात यदि मैं विवाह करूंगी तो भोलेबाबा शम्भू से हीं करूंगी, अन्यथा कुमारी हीं रहूंगी.'ताना कहकर वें तप करने लगीं.  इसलिए इनका तपश्चारिणी 'ब्रम्हचारिणी' यह नाम प्रसिद्द हो गया. इतना हीं नहीं, जब वें तप में लीं हो गयीं, तब मैना ने इनसे कहा कि 'हे पुत्री! तप मत करो_ 'उ माँ तप' तभी से इनका नाम उमा भी प्रसिद्द हो गया. 
तृतीयं चंद्रघंटेति :
                                  माता का तीसरा रूप चंद्रघंटा हैं. इनके मस्तक में घंटा के आकर का अर्ध-चन्द्र है. ये लावान्यमायी दिव्यमूर्ति हैं. इनके शरीर का रंग सुवर्ण के सामान हैं. इनके तिन नेत्र और दस हाथ हैं;जिनमें दस प्रकार के खड्ग आदि शास्त्र और बन आदि अस्त्र हैं. ये सिन्ह पर विराजमान हैं तथा लड़ने के लिए युद्ध में जाने को तैयार है. ये वीररस कि अपूर्व मूर्ति हैं. इनके चाँद-भयंकर घंटे कि ध्वनि से सभी दुष्ट, दैत्य-दानव एवं राक्षस त्रस्त हो उठाते हैं.
कूष्मांडेति चतुर्थकम
                                 माँ दुर्गा का चौथा रूप कूष्मांडा हैं. अपनी मंद-मंद मुस्कान से एंड को अर्थात ब्रम्हांड को जो उत्पन्न कराती हैं, वाही शक्ति कुष्मांडा हैं. ये सूर्यमंडल के भीतर निवास करती हैं. सूर्य के सामान इनके तेज की झलक दसों दिशाओं में व्याप्त हैं. इनकी आठ भुजाएं हैं. सातों भुजाओं में सात प्रकार के अस्त्र चमक रहें हैं तथा आठवीं भुजा में जपमाला हैं. सिंह पर आसीन होकर यें देदीप्यमान हैं. कुम्हड़े कि बलि इन्हें अति प्रिय है. अतएव इस शक्ति का 'कुष्मांडा' नाम विश्व में प्रसिद्ध हो गया.
पंचमं स्कन्दमातेति :
                              माँ दुर्गा का पंचम रूप स्कंदमाता है. शैलपुत्री ने ब्रम्हचारिणी बनकर तपस्या कि तत्पश्चात उनका विवाह भगवान शिव से हुआ. कुछ समय के पश्चात् भगवान स्कन्द उनके पुत्ररूप में उत्पन्न हुयें उनकी माता होने के कारण वे स्कंदमाता के नाम से प्रसिद्द हुयीं. भगवान स्कन्द देवताओं के सेनापति हैं.स्कन्दमाता अग्निमंडल कि देवी हैं, स्कन्द इनकी गोद में बैठें हुए हैं. इनकी तीन आँखें और चार भुजाएं हैं. ये शुभ्रवर्णा हैं तथा पद्म के आसन पर विराजमान है. 



षष्ठं कात्यायनीति च :
                               माँ दुर्गा का यह छठा रूप है . कात्य गोत्र में जन्मे ऋषि कात्यायन ने माँ भगवती की कठोर तपस्या की ऋषि के ताप से प्रसन्न होकर माँ ने ऋषि कात्यायन के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया . इसीलिए माता का यह रूप कात्यायनी के नाम से जाना जाता है. कहते है की वृन्दावन की गोपियों ने भी कृष्ण को अपने पति रूप में पाने केलिए इन्ही देवी की पूजा की थी . इससे यह भ पता चलता है की ये देवी व्रजमंडली की अधीश्वरी देवी है .इनका स्वर्णमय दिव्य स्वरुप है .इनके तीन नेत्र और आठ भुजाएं है .इनके सभी हाथों में अलग-अलग अस्त्र-शास्त्र है .इनका वाहन सिंह है

सप्तमं कालरात्रीति :
                            माँ की सातवीं शक्ति का नाम कालरात्रि है . इनका रंग अंधकार की तरह काला है. इनकी सवारी गधा है .इनके तीन गोल-गोल आँखें है. इनके श्वांस-प्रश्वांस में अग्नि की ज्वाला निकलती रहती है. माँ अपने भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त करती है. ये सभी का शुभ करती है इसीलिए इन्हें ' शुभंकरी ' भी कहते है.


महागौरी चाष्टमं :
                             आठवीं दुर्गा शक्ति का नाम महागौरी है. इनका वर्ण गौर है. इनकी अवस्था आठ वर्ष की है. इनका आभूषण भी सफ़ेद रंग का है. इनकी चार भुजाएं हैं. कहा जाता है की हिमालय में तपस्या करते-करते उनका शरीर मलिन हो गया था. शिवजी के दर्शन के बाद, शिवजी ने गंगा जल से माता को मल-मल कर धोया. गंगा जल से स्नान के बाद उनका शरीर गौर वर्ण का हो गया .इसीलिए उन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है. 




नवमं सिद्धिदात्री च :
                                    माँ दुर्गा का यह नवां रूप है .यह देवी सिध्दी की देवी है. इन्ही से सभी सिध्दियां पाते है .कहते है की भगवान शिव ने इनकी ही  आराधना से सिध्दियां पायीं थी इस कारण भगवान शिव का आधा शरीर नारी का हो गया था इसीलिए भगवान शिव को अर्धनारीश्वर  भी कहते है .ये देवी सिंहवाहिनी तथ चतुर्भुजा और सर्वदा प्रसन्नवदना हैं.सभी भक्त, साधक, योगी इनकी आराधना और उपासना करते है.
प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रम्हचारिणी.
तृतीयं चंद्रघंटेति कूष्मांडेति: चतुर्थकम.
पंचमं स्कन्दमातेति दुर्गादेव्यो हयवन्तु नः.
कात्यायिनी कालरात्रि महागौरी महेश्वरी.
नवमं सिद्धिदात्री च दुर्गादेव्यो हयवन्तु नः.
          
                                                              जय माता दी !

                                            
 



                 
                         



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