गुरुवार, 25 नवंबर 2010

मेरा भारत महान!

ब्लॉग पढने के लिए मैं आपसबों का आभारी हूँ. मैंने अपना ब्लॉग हिन्दी में लिखने का निर्णय लिया,क्योंकि आज हमारी राष्ट्रभाषा की उपेक्षा न केवल सामान्य लोगों द्वारा किया जा रहा है बल्कि सम्मानित व्यक्तियो द्वारा भी किया जा रहा है.मुझे बहुत दु:ख होता है. क्या हम रुस,चीन,जापान या अन्य देशों की तरह विकसित नहीं हो सकते हैं? हाँ मैं जानता हूँ कि अग्रेंजी की जानकारी आवश्यक है परंतु अपने देश को पूरी तरह अंग्रेजी की ओर ले जाना हमारी संस्कृति,सभ्यता,तथा अपनेस्वाभिमान की उपेक्षा से .ज्यादा कुछ भी नही है.अत: आप सभी से मै अनुरोध करता हूँ कि आप अपनी मातृभाषा में कम-से-कम कुछ शब्द अवश्य लिखें.                                                                                                                                                                           मेरा अनुरोध विशेषकर उन बडी हस्तियो से है,जिन्होने ये
भुला दिया है कि भारत की भी एक अपनी भाषा है. फिल्मी हस्तियों का ही यदि उदाहरण लिया जाये तो आधा-से-अधिक केवल अग्रेंजी के शब्दों में लिखे हिन्दी के संवाद बोलते हैं जबकि उनकी   विलाशीतापुर्ण जीवन हिन्दीभाषियो के उपर निर्भर है. मेरा सवाल है कि यदि राष्ट्रपति ओबामा केवल अपने राष्ट्रहित और अपने देश के व्यापारहित के लिये  हिन्दी बोल सकते हैं तो जिनका सम्पूर्ण जीवनयापन हिन्दी और हिन्दुस्तान पर निर्भर है वे हिन्दी क्यों नहीं बोल सकतें?
                                                                      आज यह देखकर ग्लानि होती है कि गाँव और छोटे शहरों के लोग भी हिन्दी की उपेक्षा करने से नही चूकते. वे जन्म लेते ही अपने बच्चों को अंग्रेजी सिखलाने लगे हैं और बच्चों का नाम भी अग्रेजों के नाम पर रखने लगे हैं तथा अंग्रेजी मे शिक्षा देना अपना सम्मान समझते हैं. यदि अंग्रेजी की शिक्षा देने के लिये बिकना भी पडे तो माँ-बाप पीछे नहीं हटते. क्या राष्ट्रभाषा हिन्दी और हिन्दुस्तान केवल विदेशियों को हीं रोजगार दे सकती है, अपने स्वदेशियो को नहीं?
                                                                     मै अपने पहले ब्लॉग के माध्यम से हिन्दी बोलने वाले और अपने राष्ट्रभाषा से प्रेम करने वाले लोगों से आग्रह करता हूँ कि वे अपना ब्लॉग हिन्दी में लिखकर हिन्दी को वापस स्वर्णयुग लौटाएँ. आशा करता हूँ कि अब संसद मे हिन्दी ओबामा के मुख से सूनकर खुशी न मिले बल्कि मनमोहन (भारतीय) के मुख से हिन्दी सुनकर गर्व हो.
                                                                                     जय हिन्द!         

1 टिप्पणी:

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